'कलमकारी कलाकृति ' नाम से ही प्रत्यक्ष होता है कि इस अनुपम कला शैली का उपयुक्त शस्त्र 'कलम' है जिसके द्वारा जटिल मुक्तहस्त अाकृति उकेर कर उन्हें रंगों से भरा जाता है। कलमकारी शैली की अमिट छाप हमारे ग्रंथ और स्वर्णिम इतिहास में साफ झलकती है। रामायण और महाभारत में भी इसका वर्णन किया गया है।
कलमकारी सुंदरता की मिसाल तो है ही,हमारी सहज प्रकृति के रंगों से सजने से कारण तराशी हुई आकृति और प्रभावशाली बन जाती है ।कलमकारी को स्वरूप देने की प्रक्रिया में अनुमन २३ चरण होता है।
प्रक्रिया शुरू करने से पहले कारीगर सारी जरुरत की सामग्री, जैसे कि रूई या सुती का कपड़ा, लकड़ी का कोयला, फिटकिरी और रंगने के लिए फूल और पत्तों, पेङों की छाल से निचोड़ बनाए गए रंगों को एकत्रित किया जाता है।
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फिर रूई से स्टार्च को निकालने के लिए कपङे को धोकर धूप में सुखाया जाता है। सुखने के बाद कलम से, मुलतः काले रंग से मौलिक रूपरेखा खींचा जाता है। रूपरेखा सुखने पर फिटकिरी लगाकर रंग भरा जाता है।
रंगों के सुखने पर , कपङे को धोने और सुखाने की प्रक्रिया दोहराया जाता है। सुखने पर बाकी के रंग जैसे नीले और पीले रंगों का प्रयोग किया जाता है। शायद जटिल प्रक्रिया होने के कारण ही आज यह कला विलुप्त होती जा रही है और केवल कुछ लोगों के बीच सिमट कर रह गयी है।
कलमकारी कलाकृति को मुख्यतः दो प्रकार में विभाजित किया जाता है। पहला, श्रीकलाहस्ति हाथों से कलम के द्वारा उकेरी जाती है। दुसरा, मछिलिपट्नम कलमकारी में लकङी के ब्लॉक के माध्यम से किया जाता है । यह आंध्र प्रदेश में बेहद प्रचलित है। कलमकारी संसकृति और श्रेष्ठता का उचित समावेश है।
प्राचीन काल में 'चित्रकार' गाँवों में घुमकर पौराणिक कथा सुनाते थे जिसमें कलमकारी का जिक्र भी किया जाता था। आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु के गाँव में कलमकारी कला का प्रचलन अधिकतम था। लेकिन कुछ समय बाद कलमकारी के लोकप्रियता में गिरावट आने लगी। हालांकि १८वीं शताब्दी में कलमकारी को बढ़ावा मिला जब ब्रिटिशर काल में हस्तकला की मांग बढ़ी।
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मध्यकाल में कलमकारी वेजिटेबल डाई के इस्तेमाल से भी बनाया जाने लगा। आधुनिक वर्तमान काल में जब सबकुछ की डीजिटिकरण हो रहा है , हमारी संस्कृति और कला भला कैसी अछुत रहे? अब तो साङी बनाने के लिए भी कलमकारी का प्रयोग किया जाता है ।
आधुनिकता के इस दौर में जब हमारे संस्कार और मूल्य हमारे जीवन से वाष्पित हो रही है, हमारे संस्कार, कला और मूल्यों को अपने जीवन में पुनः स्थापित करना बेहद जरुरी है। कला को संरक्षित रखने के लिए नई पीढ़ी को कला के प्रति रुचि बढ़ावा देना होगा।
Author: Tanya Saraswati Editor: Rachita Biswas
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