top of page
Writer's pictureRachita Biswas

मधुबनी कला- एक कालजयी परम्परा

Updated: Jul 15, 2022

परिचय


मिथिला क्षेत्र जैसे दरभंगा, पूर्णीया, सहरसा, मधुबनी, नेपाल आदि में रहने वाली महिलाओं के खाली समय और कलात्मक अभिव्यक्ति से जन्मी मधुबनी चित्रकला "मिथिला पेंटिंग" के नाम से भी जानी जाती है। बिहार के गाँवों में भित्ति चित्र और रंगोली जैसी घरेलू चित्रकला के रूप में जन्म ली इस शैली ने आज अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना ली है।

Source: https://images.app.goo.gl/YkD4Zq5dCvLEwfc97


पृष्ठभूमि


पौराणिक कथाओं की मानें तो राजा जनक ने सीता-राम विवाह के दौरान महिला कलाकारों से यह चित्र पूरे राज्य को सजाने के लिए बनवाए थे।

ऐसा कहा जाता है कि ब्रिटिश शासन के दौरान विलयम आर्चर नाम के एक ब्रिटिश अफसर ने इस चित्रकला पर पहली बार प्रकाश डाला। बिहार के 1934 के भूकंप के समय अपने निरीक्षण कार्य में उन्हें कई घरों में मधुबनी चित्रकारी देखने को मिली।

जब बिहार में बार-बार प्राकृतिक विपदा आने लगी और उसकी वजह से घरों में टूट-फूट होने लगी तो कलाकारों ने इस प्रतिष्ठित कला को जीवित रखने के लिए यह चित्रकारी दीवारों के अलावा कागज़ और कपड़ों पर भी शुरू कर दी।


विधी


पारंपरिक रूप से भित्ति चित्र के लिए चिकनी मिट्टी और गोबर को बबूल की गोंद के साथ घोल कर घर की दीवारों पर लिपाई की जाती है। चटकीले रंगों को फूलों, पौधों आदि प्राकृतिक चीज़ों से बनाया जाता है। इन रंगों की पकड़ बनाने के लिए इन्हे बबूल के वृक्ष की गोंद में मिलाया जाता है ताकि चित्रकारी में रंग बहे ना। माचिस की तिली या बांस की कलम से चित्र उकेरी जाती है।

समय के साथ कलाकारों ने ऐक्रेलिक रंग और ब्रशों का इस्तेमाल करना शुरू किया लेकिन बिहार के कुछ हिस्सों में आज भी प्रामाणिक शैली से ही चित्रकारी की जाती है।


सारवस्तु


शुभ माने जाने वाली यह चित्रकला अपने प्रतीकात्मकता की वजह से बहुत खास होती है। कैनवास पर खाली जगहों को छोड़ा नही जाता, फूल, पत्तियों आदि पैटर्नो को बहुत करीने से इन रिक्त स्थानों में भरा जाता है। देवी- देवता और प्राकृतिक नज़ारों के अलावा कुल देवता का भी चित्रण होता है। माँ दुर्गा, माँ काली, सीता-राम, राधा-कृष्ण, शिव-पार्वती, गौरी-गणेश और विष्णु के दशावतारों के चित्र प्रचलित हैं। मधुबनी में ज्ञान, समृद्धि, प्रेम, वफ़ादारी, शक्ति आदि मूल्यों को फूल-पौधों और वनस्पतियों के रूप में दर्शाया जाता है।


मधुबनी कला

Source: https://images.app.goo.gl/6AZeYx6khGY9iFYPA


प्रकार


मधुबनी चित्रकारी के कुल पाँच प्रकार होते हैं- भरनी, काछनी, गोदना, कोहबर और तांत्रिक।

भरनी में मूल रूप से रंग भरना होता है और चित्रों को काली लकीरों से प्रतिरूप दिया जाता है।

वहीं दूसरी ओर काछनी में जटिल लकीरों का इस्तेमाल किया जाता है और सिर्फ़ दो रंगों का ही प्रयोग होता है। गोदना शैली को इस कला का सरल रूप माना जाता है जिसमें बांस और कालिख से चित्र बनाए जाते हैं।

उत्सव, और खास कर कि विवाह के अवसरों पर कोहबार शैली के चित्र बनाए जाते हैं। तांत्रिक शैली हिन्दू धर्म से प्रेरित है और देवी- देवताओं पर केंद्रित होती है।


विगम


सीता देवी, यमुना देवी और महासुंदरी देवी जैसी उम्दा कलाकारों ने अपनी विशेष प्रतिभा और कड़ी मेहनत से इस कला को ऊंचाइयों तक पहुँचाया और युवा पीढ़ी को प्रेरित किया। मधुबनी चित्रकारी का 2012 में वनों के संरक्षण में बहुत बड़ा योगदान रहा है। और तो और, सदियों से चली आ रही यह परंपरा नारीवादी दृष्टिकोण से महिलाओं को सशक्त करती आई है। धर्म, प्रकृति और अंतर्मन से जुड़ी यह कला आज देश- विदेश के हर कला प्रेमी के संग्रह में अपनी जगह बना चुकी है।


मधुबनी कला

ऐसे ही कला से जुड़े मज़ेदार जानकारियों और कहानियों के लिए हमारे साथ जुड़े रहें, और हाँ! अपना प्यार देना मत भूलिएगा! अगली ब्लॉग पोस्ट प्रकृति और मधुबनी के ख़ास रिश्ते के बारे में होगी।

तबतक के लिए हमारी तरफ से ढेर सारी शुभकामनाएं और खूब सारा स्नेह!


Editor-Rachita Biswas

Written by- Pratichi Rai


405 views0 comments

Related Posts

See All

Comentarios


bottom of page