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पारंपरिक कला का अभ्यास क्यों महत्वपूर्ण है?

Updated: Jul 15, 2022


Indian folk art collage

पीढ़ियों से चली आ रही पारंपरिक कला पूरे समुदाय के लिए एक साझा अनुभव प्रदान करती है।

इन कला रूपों में निहित मूल्यों, सांस्कृतिक प्रथाओं और विश्वास प्रणालियों के साथ, वे अक्सर एक आम भाषा बनाते हैं जिसके माध्यम से समाज को गढ़ने वाले विभिन्न समुदायों को जोड़ा जा सकता है।


peacock in Kalamkaari

लोक कला हजारों सदियों से भारत की परंपराओं का हिस्सा रही है।

भीमबेटका के शैल आश्रयों में प्रागैतिहासिक गुफा चित्रों से लेकर मधुबनी की जटिल दीवार चित्रकला तक, भारत की विविधता स्पष्ट झलकती है।

देश के हर क्षेत्र की अपनी कलात्मक परंपराएं रही हैं।

प्रारंभ में प्रकृति के सरल चित्रण होने के पश्चात भारतीय पारंपरिक चित्र धीरे-धीरे देवताओं, मानव शरीर में ब्रह्मांड के विस्तृत प्रतिनिधित्व- सूर्य, चंद्रमा और अन्य आध्यात्मिक अवधारणाओं के रूप में विकसित हुआ।


देवताओं, ब्रह्मांड के तत्वों,धार्मिक और जातीय प्रथाओं के प्रतीकवाद से अत्यंत प्रभावित इन पारंपरिक कला रूपों ने गुफाओं से लेकर घर, मंदिर की दीवारों से लेकर बाद में हस्तनिर्मित कागज के कैनवास को अलंकृत किया है।


समय के साथ, नए उपकरण और पेंटिंग प्रौद्योगिकियां बनाई गईं जो एक ही समय में लोक कला के लोकाचार और परंपराओं को बनाए रखते हुए खोजों के अनुकूल थीं।


भारतीय पारंपरिक चित्रों का महत्व


जातीय रूप से विविध देश की विविध लोक कला परंपराएं इसकी समृद्ध विरासत की नींव बनाती हैं । समुदायों की अनूठी विशेषताओं और सामूहिक कहानियों को दर्शाते हुए, ये लोक चित्र भारत के समृद्ध अतीत और विविध परंपराओं की एक कड़ी हैं।

Madhubani Tree of Life

इसकी देश की व्यक्तिगत और सांस्कृतिक पहचान को मजबूत करने में अहम भूमिका निभा रही है।


व भारतीय पारंपरिक चित्रकला एक ऐसा केंद्र बिंदु प्रदान करती हैं जिस में सभी लोक संस्कृति मिलती है।


लंबे समय से चली आ रही समृद्ध परंपराओं और संस्कृति में निहित, इन कलाओं में वर्तमान युग में अनुकूलन की समृद्ध क्षमता है, जो सांस्कृतिक रूप से विशिष्ट सामग्री के विकास के लिए प्रेरणा और नवाचार का एक गहरा संसाधन प्रदान करता है।


कई पारंपरिक कला अभी भी आधुनिकीकरण से अछूते हैं और आज भी इनका अभ्यास प्राचीन ढंग से होता रहा है।


लेकिन अब समय के साथ इन लोक कलाओं का मूल जगहों से पूरे विश्व में प्रचलन हो रहा है।


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fish in Gond Indian art form

महाकाव्यों, देवताओं, गणित, ब्रह्मांड, और आयुर्वेद और मानव शरीर के प्रतीकवाद को दर्शाते हुए भारतीय पारंपरिक कला रूप प्रतीकात्मकता में समृद्ध रहे हैं।


प्रत्येक देवता का अपना अलग रूप, मुद्राएं और अन्य प्रतीकों ने इन पारंपरिक लोक चित्रों को और आकर्षक तथा प्रभावशाली बनाया है।


उदाहरण के लिए, देवी दुर्गा, काली, महिषासुर और कृष्ण की कथाएं पारंपरिक मधुबनी और पट्टाचित्र चित्रों की नींव रही हैं।

जबकि गोंड चित्रों ने प्रकृति के तत्वों जैसे पेड़, जानवरों, स्थानीय देवताओं और रीति-रिवाजों को अपना आधार बनाया है।


warli painting Indian folk art

अंत में, पारंपरिक भारतीय कलाएं अपने व्यक्तिगत और राष्ट्रीय प्रभाव से अधिक मुल्यवान है और वैश्विक अर्थव्यवस्था में एक सांस्कृतिक प्रतिनिधि करती है।

पारंपरिक कलाकारों को ,जो पीढ़ियों से अपना योगदान दे रहे हैं, इन्हें पहचान दिलाने में अद्वितीय कलाकृति का महत्वपूर्ण भूमिका रहा है।

पारंपरिक कला एक महत्वपूर्ण पहलू है जो यहां प्रचलित विभिन्न संस्कृतियों को शामिल करते हुए देश की एक विशिष्ट पहचान स्थापित करने में युगों तक सहयोग करता रहेगा।






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